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भूली-बिसरी यादों को लिपटाए हुए हूँ | शाही शायरी
bhuli-bisri yaadon ko lipTae hue hun

ग़ज़ल

भूली-बिसरी यादों को लिपटाए हुए हूँ

ज़ेहरा निगाह

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भूली-बिसरी यादों को लिपटाए हुए हूँ
टूटा जाल समुंदर पर फैलाए हुए हूँ

वहशत करने से भी दिल बेज़ार हुआ है
दश्त ओ समुंदर आँचल में सिमटाए हुए हूँ

वो ख़ुशबू बन कर आए तो बे-शक आए
मैं भी दस्त-ए-सबा से हाथ मिलाए हुए हूँ

टूटे-फूटे लफ़्ज़ों के कुछ रंग घुले थे
उन की मेहंदी आज तलक भी रचाए हुए हूँ

जिन बातों को सुनना तक बार-ए-ख़ातिर था
आज उन्हीं बातों से दिल बहलाए हुए हूँ