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भूले तो जैसे रब्त कोई दरमियाँ न था | शाही शायरी
bhule to jaise rabt koi darmiyan na tha

ग़ज़ल

भूले तो जैसे रब्त कोई दरमियाँ न था

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

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भूले तो जैसे रब्त कोई दरमियाँ न था
इतने बदल भी सकते हो तुम पे गुमाँ न था

उस अंजुमन से उठ के भी हम अंजुमन में थे
ख़ल्वत वो कौन सी थी तमाशा जहाँ न था

तुम क्या बदल गए कि ज़माना बदल गया
तुम सरगिराँ न थे तो कोई सरगिराँ न था

हम और शिकवा-संजी-ए-अहल-ए-जफ़ा कि दिल
कम-बख़्त बे-मज़ा था अगर ख़ूँ-चकाँ न था