भूले से भी न जानिब-ए-अग़्यार देखना
शर्त-ए-वफ़ा यही है ख़बरदार देखना
मानिंद-ए-शम्अ बैठ के तय की रह-ए-अदम
यारो मोजज़ा है कि रफ़्तार देखना
कहती है रूह दिल से दम-ए-नज़अ होशियार
हम तो अदम को जाते हैं घर-बार देखना
अल्लाह रे इज़्तिराब-ए-तमन्ना-ए-दीद-ए-यार
फ़ुर्सत में इक निगाह की सौ बार देखना
'तस्लीम' रू-ए-यार को हसरत की आँख से
अच्छा नहीं है शौक़ में हर बार देखना
ग़ज़ल
भूले से भी न जानिब-ए-अग़्यार देखना
अमीरुल्लाह तस्लीम