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भूले से भी लब पर सुख़न अपना नहीं आता | शाही शायरी
bhule se bhi lab par suKHan apna nahin aata

ग़ज़ल

भूले से भी लब पर सुख़न अपना नहीं आता

आनंद नारायण मुल्ला

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भूले से भी लब पर सुख़न अपना नहीं आता
हाँ हाँ मुझे दुनिया में पनपना नहीं आता

दिल को सर-ए-उल्फ़त भी है रुस्वाई का डर भी
उस को अभी इस आँच में तपना नहीं आता

ये अश्क-ए-मुसलसल हैं महज़ अश्क-ए-मुसलसल
हाँ नाम तुम्हारा मुझे जपना नहीं आता

तुम अपने कलेजे पे ज़रा हाथ तो रक्खो
क्यूँ अब भी कहोगे कि तड़पना नहीं आता

मय-ख़ाने में कुछ पी चुके कुछ जाम-ब-कफ़ हैं
साग़र नहीं आता है तो अपना नहीं आता

ज़ाहिद से ख़ताओं में तो निकलूँगा न कुछ कम
हाँ मुझ को ख़ताओं पे पनपना नहीं आता

भूले थे उन्हीं के लिए दुनिया को कभी हम
अब याद जिन्हें नाम भी अपना नहीं आता

दुख जाता है जब दिल तो उबल पड़ते हैं आँसू
'मुल्ला' को दिखाने का तड़पना नहीं आता