भूल जाना था तो फिर अपना बनाया क्यूँ था
तुम ने उल्फ़त का यक़ीं मुझ को दिलाया क्यूँ था
एक भटके हुए राही को सहारा दे कर
झूटी मंज़िल का निशाँ तुम ने दिखाया क्यूँ था
ख़ुद ही तूफ़ान उठाना था मोहब्बत में अगर
डूबने से मिरी कश्ती को बचाया क्यूँ था
जिस की ताबीर अब अश्कों के सिवा कुछ भी नहीं
ख़्वाब ऐसा मेरी आँखों को दिखाया क्यूँ था
अपने अंजाम पे अब क्यूँ हो पशेमान 'सबा'
एक बेदर्द से दिल तुम ने लगाया क्यूँ था
ग़ज़ल
भूल जाना था तो फिर अपना बनाया क्यूँ था
सबा अफ़ग़ानी