भूकी है ज़मीं भूक उगलती ही रहेगी
ये भूक मिरे पेट में पलती ही रहेगी
जीवन भी मिरा दश्त है मस्कन भी मिरा दश्त
होंटों पे मिरे प्यास मचलती ही रहेगी
दिल में नहीं अब पास रहा चैन सुकूँ का
इक आग सी दिल में है उबलती ही रहेगी
हस्ती के उजड़ने का भला दुख मुझे क्यूँ हो
ये ठोकरें खा खा के सँभलती ही रहेगी
चेहरे नए अंदाज़ नए तौर नए हैं
दुनिया है ये सौ रंग बदलती ही रहेगी
मज़कूर करें क्या दिल-ए-मजबूर का 'नाक़िद'
इक हूक है सीने से निकलती ही रहेगी

ग़ज़ल
भूकी है ज़मीं भूक उगलती ही रहेगी
शब्बीर नाक़िद