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भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा | शाही शायरी
bhigi hui aankhon ka ye manzar na milega

ग़ज़ल

भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा

बशीर बद्र

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भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा
घर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा

फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा

आँसू को कभी ओस का क़तरा न समझना
ऐसा तुम्हें चाहत का समुंदर न मिलेगा

इस ख़्वाब के माहौल में बे-ख़्वाब हैं आँखें
जब नींद बहुत आएगी बिस्तर न मिलेगा

ये सोच लो अब आख़िरी साया है मोहब्बत
इस दर से उठोगे तो कोई दर न मिलेगा