भेद दुनिया के खोलता हूँ मैं
सब सुनें अब कि बोलता हूँ मैं
आसमाँ एक जस्त-ए-ताज़ा-दमी
धूप भर पर टटोलता हूँ मैं
हर्फ़-ए-मसरफ़ है लम्हा-ए-गुज़राँ
शोला-ए-कुन टटोलता हूँ मैं
वुसअत-ए-वज्द है मिरी पहचान
रंग हर शय में घोलता हूँ मैं
सद शफ़क़ सम्त लम्हा-ए-सय्याल
बीच में ख़ुद को तौलता हूँ मैं
गौहर-ए-आब-दार हो के भी 'तूर'
ख़ुद को मिट्टी में रोलता हूँ मैं

ग़ज़ल
भेद दुनिया के खोलता हूँ मैं
कृष्ण कुमार तूर