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भेद दुनिया के खोलता हूँ मैं | शाही शायरी
bhed duniya ke kholta hun main

ग़ज़ल

भेद दुनिया के खोलता हूँ मैं

कृष्ण कुमार तूर

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भेद दुनिया के खोलता हूँ मैं
सब सुनें अब कि बोलता हूँ मैं

आसमाँ एक जस्त-ए-ताज़ा-दमी
धूप भर पर टटोलता हूँ मैं

हर्फ़-ए-मसरफ़ है लम्हा-ए-गुज़राँ
शोला-ए-कुन टटोलता हूँ मैं

वुसअत-ए-वज्द है मिरी पहचान
रंग हर शय में घोलता हूँ मैं

सद शफ़क़ सम्त लम्हा-ए-सय्याल
बीच में ख़ुद को तौलता हूँ मैं

गौहर-ए-आब-दार हो के भी 'तूर'
ख़ुद को मिट्टी में रोलता हूँ मैं