भौवें चढ़ी हैं और है तेवर झुका हुआ
कुछ आज बोलता है वो हम से रुका हुआ
जो चाहता है दिल को मिरे दिल-दही करे
सौदा ये है क़दीम से यूँही चुका हुआ
ओसों गई है प्यास कहीं दीदा-ए-नमीं
बुझता है आँसुओं से कहाँ दिल फुंका हुआ
अय्यूब साबिर और वो कनआँ के पीर से
मेरे से ज़ोर-ओ-शोर का सब्र-ओ-बुका हुआ
उन चितवनों चुराए दबे पाँव 'अज़फ़री'
देखो किधर चला है छपा और लुका हुआ
ग़ज़ल
भौवें चढ़ी हैं और है तेवर झुका हुआ
मिर्ज़ा अज़फ़री