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भौवें चढ़ी हैं और है तेवर झुका हुआ | शाही शायरी
bhauwen chaDhi hain aur hai tewar jhuka hua

ग़ज़ल

भौवें चढ़ी हैं और है तेवर झुका हुआ

मिर्ज़ा अज़फ़री

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भौवें चढ़ी हैं और है तेवर झुका हुआ
कुछ आज बोलता है वो हम से रुका हुआ

जो चाहता है दिल को मिरे दिल-दही करे
सौदा ये है क़दीम से यूँही चुका हुआ

ओसों गई है प्यास कहीं दीदा-ए-नमीं
बुझता है आँसुओं से कहाँ दिल फुंका हुआ

अय्यूब साबिर और वो कनआँ के पीर से
मेरे से ज़ोर-ओ-शोर का सब्र-ओ-बुका हुआ

उन चितवनों चुराए दबे पाँव 'अज़फ़री'
देखो किधर चला है छपा और लुका हुआ