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भरी बहार में दामन-ए-दरीदा हैं हम लोग | शाही शायरी
bhari bahaar mein daman-e-darida hain hum log

ग़ज़ल

भरी बहार में दामन-ए-दरीदा हैं हम लोग

राज़ मुरादाबादी

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भरी बहार में दामन-ए-दरीदा हैं हम लोग
हमें था ज़ोम बहार-आफ़्रीदा हैं हम लोग

ये और बात कि दामन-दरीदा हैं हम लोग
ब-फ़ैज़-ए-इश्क़ मगर सर-कशीदा हैं हम लोग

हम आईना हैं मगर अक्स-ए-ज़ात से महरूम
तिरी सदा हैं मगर ना-शुनीदा हैं हम लोग

जहाँ जहाँ भी गए हैं महक उठी है फ़ज़ा
तिरे फ़िराक़ की बू-ए-रसीदा हैं हम लोग

कड़ी है धूप शजर है न साया-ए-दीवार
बिछड़ के उस से सुकूँ-ना-चशीदा हैं हम लोग

ये किस ने आइना-साज़ी का फ़न किया ईजाद
ये आइने हैं कि चेहरा-बुरीदा हैं हम लोग