EN اردو
भरे मोती हैं गोया तुझ दहन में | शाही शायरी
bhare moti hain goya tujh dahan mein

ग़ज़ल

भरे मोती हैं गोया तुझ दहन में

मीर मोहम्मदी बेदार

;

भरे मोती हैं गोया तुझ दहन में
कि दुर-रेज़ी तू करता है सुख़न में

बहार-आरा वही है हर चमन में
उसी की बू है नसरीन-ओ-समन में

न फिर ईधर उधर नाहक़ भटकता
कि है वो जल्वा-गर तेरे ही मन में

जहाँ वो है नहीं वाँ कुफ़्र ओ इस्लाम
अबस झगड़ा है शैख़ ओ बरहमन में

हुई जाती है पानी शर्म से शम्अ
मगर वो माह आया अंजुमन में

छुड़ाया था निपट मुश्किल से फिर आह
दिल अटका उस की ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन में

जुनूँ ने दस्त-कारी ऐसी भी की
न था गोया गरेबाँ पैरहन में

मरा जाता है जिस ग़ैरत में दरिया
गिरा किस का है दिल चाह-ए-ज़क़न में

मगर परवाना जल कर हो गया ख़ाक
कि रो-रो शम्अ जलती है लगन में

जो सुनते थे दम-ए-ईसा का एजाज़
सो देखा हम ने वो तेरे सुख़न में

न देखा उस परी-जल्वा को 'बेदार'
रहा मशग़ूल तू याँ मा-ओ-मन में