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भर नज़र देखेंगे हम उस को मिला जानाँ अगर | शाही शायरी
bhar nazar dekhenge hum usko mila jaanan agar

ग़ज़ल

भर नज़र देखेंगे हम उस को मिला जानाँ अगर

रज़ा अज़ीमाबादी

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भर नज़र देखेंगे हम उस को मिला जानाँ अगर
देवेंगे रोने से फ़ुर्सत दीदा-ए-गिर्यां अगर

हश्र में इंसाफ़ तो होगा व-लेकिन उस को देख
हाल अपना कह सकेगा आशिक़-ए-हैराँ अगर

ऐ मुस्लिमानाँ करेंगे हम सलाम उस दम तुम्हें
आ गया ईधर को वो ग़ारत-गर-ए-ईमाँ अगर

दिल को करते हो तवक़्क़ो जब के इस ग़म से हाए
इश्क़ के आग़ाज़ का होता कहीं पायाँ अगर

ऐ 'रज़ा' वादों से उस के आज क्यूँ होता ख़राब
कल ही कर लेता वफ़ा का उस की तू पैमाँ अगर