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भर दीं शबाब ने ये उन आँखों में शोख़ियाँ | शाही शायरी
bhar din shabab ne ye un aankhon mein shoKHiyan

ग़ज़ल

भर दीं शबाब ने ये उन आँखों में शोख़ियाँ

वसीम ख़ैराबादी

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भर दीं शबाब ने ये उन आँखों में शोख़ियाँ
तिल भर भी अब जगह नहीं उन में हया की है

फेंक आए उस को जा के वो कू-ए-रक़ीब में
मिट्टी ख़राब मेरे दिल-ए-मुब्तला की है

देता हूँ दिल ख़ुशी से मिरी जान छोड़िए
इस को न लीजिए ये अमानत ख़ुदा की है

तौबा न मुँह लगाएगी रिंदों को दुख़्त-ए-रज़
क़ालिब में उस के रूह किसी पारसा की है

तेरे हिनाई हाथ तक उन को है दस्तरस
ऐ रश्क-ए-गुल चमन में ये क़िस्मत हिना की है

लाखों शहीद-ए-नाज़ गए हैं जहान से
मुल्क-ए-अदम में धूम तुम्हारी जफ़ा की है

चोटी के शेर तू ने कहे इस ज़मीन में
सच है 'वसीम' तेरी तबीअ'त बला की है