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भागते सूरज को पीछे छोड़ कर जाएँगे हम | शाही शायरी
bhagte suraj ko pichhe chhoD kar jaenge hum

ग़ज़ल

भागते सूरज को पीछे छोड़ कर जाएँगे हम

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

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भागते सूरज को पीछे छोड़ कर जाएँगे हम
शाम के होते ही वापस अपने घर जाएँगे हम

काटने को एक शब ठहरे हैं तेरे शहर में
क्या बताएँ सुब्ह होगी तो किधर जाएँगे हम

धूप में फूलों सा मुरझा भी गए तो क्या हुआ
शहर से होंटों के पैमाने तो भर जाएँगे हम

आज गर्दूं की बुलंदी नापने में महव हैं
कल किसी गहरे समुंदर में उतर जाएँगे हम

ढूँडते खोया हुआ चेहरा किसी शीशे में क्यूँ
जानते गर ये कि साए से भी डर जाएँगे हम

कुछ हमारा हाल भी 'ख़ावर' है कुंदन की तरह
दुख के शो'लों में जलेंगे तो निखर जाएँगे हम