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भाड़े का इक मकाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है | शाही शायरी
bhaDe ka ek makan hun mujhko KHabar nahin hai

ग़ज़ल

भाड़े का इक मकाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है

त्रिपुरारि

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भाड़े का इक मकाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है
अपना ही मेहमाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है

कोई बताए मुझ को ज़िंदा हूँ मर चुका हूँ
गर हूँ तो मैं कहाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है

कुछ भी नहीं बचा है बस दूर तक ख़ला है
क्या मैं ही आसमाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है

तुम मेरे दरमियाँ हो मुझ को पता है लेकिन
मैं किस के दरमियाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है

कुछ सौ अरब सितारे मुझ में हैं दफ़्न या'नी
मैं एक कहकशाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है

अपने ही ज़ेहन-ओ-दिल पर छाया हुआ हूँ कब से
बादल हूँ या धुआँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है

कोई ख़याल हूँ मैं या फिर सवाल हूँ मैं
मैं कौन सा समाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है

किरदार मर चुके हैं लेकिन मैं जी रहा हूँ
मैं कैसी दास्ताँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है