बेवफ़ा हूँ न वफ़ादार हूँ मैं
सच तो ये है कि अदाकार हूँ मैं
सी दिए उस ने मिरे होंट तो क्या
अब मुजस्सम लब-ए-इज़हार हूँ मैं
मेरे हाथों में गड़े हैं काँटे
फूल हूँ और सर-ए-दार हूँ मैं
हर किरन डूब चली सूरत-ए-नब्ज़
किन अँधेरों में ज़िया-बार हूँ मैं
ज़ेहन है सर पे लटकती तलवार
किन अक़ाएद में गिरफ़्तार हूँ मैं
इस लिए मुझ से ख़फ़ा है कोई
उस का होते हुए ख़ुद्दार हूँ मैं

ग़ज़ल
बेवफ़ा हूँ न वफ़ादार हूँ मैं
ख़ालिद अहमद