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बेताबियों को मेरी बढ़ाने लगी हवा | शाही शायरी
betabiyon ko meri baDhane lagi hawa

ग़ज़ल

बेताबियों को मेरी बढ़ाने लगी हवा

शाहिद ग़ाज़ी

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बेताबियों को मेरी बढ़ाने लगी हवा
रुख़ से नक़ाब उन का उठाने लगी हवा

पहले भी कर चुकी है मिरा आशियाँ तबाह
तेवर फिर आज अपने दिखाने लगी हवा

उन की तलाश कोई भला किस तरह करे
नक़्श-ए-क़दम भी उन के मिटाने लगी हवा

पूरब से जब चली तो हरे ज़ख़्म हो गए
दिल में अजीब टीस उठाने लगी हुआ

लगता है ख़ुश नहीं है ये 'ग़ाज़ी' से इन दिनों
सेहन-ए-चमन में धूल उड़ाने लगी हुआ