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बहर-ए-चराग़ ख़ुद को जलाने वाली मैं | शाही शायरी
behr-e-charagh KHud ko jalane wali main

ग़ज़ल

बहर-ए-चराग़ ख़ुद को जलाने वाली मैं

अज़रा परवीन

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बहर-ए-चराग़ ख़ुद को जलाने वाली मैं
धुएँ में अपने कर्ब छुपाने वाली मैं

हरियाली दरकार उड़ानें भी प्यारी
किधर चली मैं किधर थी जाने वाली मैं

धनक-रुतों के जाल बिछाने वाला तू
उलझ के अपना-आप गँवाने वाली मैं

मेरी चुप का जश्न मनाने वाला तू
तलवारों से काट चुराने वाली मैं

पूँजी सुन कर सिमट न पाने वाला तू
सिक्का सिक्का तुझे चुराने वाली मैं