बेगानगी में यूँही गुज़ारा करेंगे हम
बेचैन हों तो ख़ुद को पुकारा करेंगे हम
आबादियों के हुज़्न में सहरा के शहर में
बस्ती नई बसा के नज़ारा करेंगे हम
अपने दुखों को उन की ख़ुशी में छुपाएँगे
उन की हँसी की भेंट उतारा करेंगे हम
जो जी में आएगा वो करेंगे सुरूर में
फिर फ़स्ल-ए-गुल को बा'द गवारा करेंगे हम
ना-आश्ना हबीब की बे-ए'तिनाई पर
बज़्म-ए-तख़य्युलात सँवारा करेंगे हम
अज़-रू-ए-इंतिक़ाम तिरे दर तक आएँगे
अज़-रू-ए-मेहर तुझ से किनारा करेंगे हम
अपने हर एक झूट पे ईमान लाएँगे
अपनी अना का बोझ उतारा करेंगे हम
ग़ज़ल
बेगानगी में यूँही गुज़ारा करेंगे हम
तलअत इशारत