बेगाना हो के बज़्म-ए-जहाँ देखता हूँ मैं
दुनिया के रंग-ओ-बू का समाँ देखता हूँ में
रौशन-ज़मीर जैसे कोई सर्फ़-ए-दीद होए
यूँ जल्वा-हा-ए-कौन-ओ-मकाँ देखता हूँ में
अर्ज़ां है ज़ुल्म-ओ-जौर की उफ़्तादगी मगर
जिन्स-ओ-वफ़ा-ओ-मेहर-ए-गराँ देखता हूँ मैं
इक सम्त जश्न-ए-शादी-ओ-हंगामा-ए-निशात
इक सम्त हश्र आह-ओ-फ़ुग़ाँ देखता हूँ मैं
शरह-ए-अलम दराज़ है अल-क़िस्सा ऐ 'शकील'
इक दाग़ अपने दिल में निहाँ देखता हूँ मैं
ग़ज़ल
बेगाना हो के बज़्म-ए-जहाँ देखता हूँ मैं
शकील बदायुनी