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'बेदार' करूँ किस से मैं इज़हार-ए-मोहब्बत | शाही शायरी
bedar karun kis se main izhaar-e-mohabbat

ग़ज़ल

'बेदार' करूँ किस से मैं इज़हार-ए-मोहब्बत

मीर मोहम्मदी बेदार

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'बेदार' करूँ किस से मैं इज़हार-ए-मोहब्बत
बस दिल है मिरा महरम-ए-असरार-ए-मोहब्बत

हर बुल-हवस उस जिंस का होता हैगा ख़्वाहाँ
जाँ-बाख़्ता-ख़्वाँ होवें ख़रीदार-ए-मोहब्बत

ऐ शैख़ क़दम रखियो न इस राह में ज़िन्हार
है सुब्हा-शिकन रिश्ता-ए-ज़ुन्नार-ए-मोहब्बत

करते हैं अबस मुझ दिल-ए-बीमार का दरमाँ
वाबस्ता मिरी जाँ से हैं आज़ार-ए-मोहब्बत

बच जाऊँ इस आज़ार से 'बेदार' गर अब की
हूँगा न कभी फिर मैं गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत