बेदाद के ख़ूगर थे फ़रियाद तो क्या करते
करते तो हम अपना ही कुछ तुम से गिला करते
तक़दीर-ए-मोहब्बत थी मर मर के जिए जाना
जीना ही मुक़द्दर था हम मर के भी क्या करते
मोहलत न मिली ग़म से इतनी भी कि हाल अपना
हम आप कहा करते और आप सुना करते
नादिम उसे चाहा था जान उस पे फ़िदा कर के
तदबीर तो अच्छी थी तक़दीर को क्या करते
अहबाब से क्या कहिए इतना न हुआ 'फ़ानी'
जब ज़िक्र मिरा आता मरने की दुआ करते
ग़ज़ल
बेदाद के ख़ूगर थे फ़रियाद तो क्या करते
फ़ानी बदायुनी