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बेचने आए कोई क्या दिल-ए-शैदा ले कर | शाही शायरी
bechne aae koi kya dil-e-shaida le kar

ग़ज़ल

बेचने आए कोई क्या दिल-ए-शैदा ले कर

बेख़ुद देहलवी

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बेचने आए कोई क्या दिल-ए-शैदा ले कर
दाम देते ही नहीं आप तो सौदा ले कर

चार दिन भी तो न रक्खा दिल-ए-शैदा ले कर
आप ने हम से भी कम-बख़्त को खोया ले कर

क़त्ल के ब'अद नज़ाकत से जो थक जाते हैं
बैठ जाते हैं वो कुश्ते का सहारा ले कर

ग़ैर का क़त्ल कुछ ऐसा तो नहीं है मुश्किल
छोड़ दो हाथ कोई नाम हमारा ले कर

साँस के साथ जो होती है खटक सीने में
ज़ोफ़ से दर्द भी उठता है सहारा ले कर

आ गया मुझ को नज़र अपनी वफ़ा का अंजाम
मैं ने तलवार को क़ातिल से जो देखा ले कर

अब तो 'बेख़ुद' को ये दावा है ब-क़ौल-ए-उस्ताद
आदमी इश्क़ करे नाम हमारा ले कर