बे-ज़ौक़-ए-नज़र बज़्म-ए-तमाशा न रहेगी
मुँह फेर लिया हम ने तो दुनिया न रहेगी
ईज़ा न रहेगी जो गवारा न रहेगी
छेड़ा मुझे दुनिया ने तो दुनिया न रहेगी
दिल ले के ये क्या ज़िद है कि अब जान भी क्यूँ हो
ये भी न रहेगी बहुत अच्छा न रहेगी
ये दर्द-ए-मोहब्बत ग़म-ए-दुनिया तो नहीं है
अब मौत भी जीने का सहारा न रहेगी
ऐसा भी कोई दिन मिरी क़िस्मत में है 'फ़ानी'
जिस दिन मुझे मरने की तमन्ना न रहेगी
ग़ज़ल
बे-ज़ौक़-ए-नज़र बज़्म-ए-तमाशा न रहेगी
फ़ानी बदायुनी