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बे-ज़ौक़-ए-नज़र बज़्म-ए-तमाशा न रहेगी | शाही शायरी
be-zauq-e-nazar bazm-e-tamasha na rahegi

ग़ज़ल

बे-ज़ौक़-ए-नज़र बज़्म-ए-तमाशा न रहेगी

फ़ानी बदायुनी

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बे-ज़ौक़-ए-नज़र बज़्म-ए-तमाशा न रहेगी
मुँह फेर लिया हम ने तो दुनिया न रहेगी

ईज़ा न रहेगी जो गवारा न रहेगी
छेड़ा मुझे दुनिया ने तो दुनिया न रहेगी

दिल ले के ये क्या ज़िद है कि अब जान भी क्यूँ हो
ये भी न रहेगी बहुत अच्छा न रहेगी

ये दर्द-ए-मोहब्बत ग़म-ए-दुनिया तो नहीं है
अब मौत भी जीने का सहारा न रहेगी

ऐसा भी कोई दिन मिरी क़िस्मत में है 'फ़ानी'
जिस दिन मुझे मरने की तमन्ना न रहेगी