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बे-ज़बाँ कलियों का दिल मैला किया | शाही शायरी
be-zaban kaliyon ka dil maila kiya

ग़ज़ल

बे-ज़बाँ कलियों का दिल मैला किया

वज़ीर आग़ा

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बे-ज़बाँ कलियों का दिल मैला किया
ऐ हवा-ए-सुब्ह तू ने क्या किया

की अता हर गुल को इक रंगीं क़बा
बू-ए-गुल को शहर में रुस्वा किया

क्या तुझे वो सुब्ह-ए-काज़िब याद है
रौशनी से तू ने जब पर्दा किया

बे-ख़याली में सितारे चुन लिए
जगमगाती रात को अंधा किया

जाते जाते शाम यक-दम हंस पड़ी
इक सितारा देर तक रोया किया

रूठ कर घर से गया तू कितनी बार
क्या दर-ओ-दीवार ने पीछा किया

अपनी उर्यानी छुपाने के लिए
तू ने सारे शहर को नंगा किया