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बे-वज़्अ शब-ओ-रोज़ की तस्वीर दिखा कर | शाही शायरी
be-waza shab-o-roz ki taswir dikha kar

ग़ज़ल

बे-वज़्अ शब-ओ-रोज़ की तस्वीर दिखा कर

सलीम शाहिद

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बे-वज़्अ शब-ओ-रोज़ की तस्वीर दिखा कर
अब दाद न माँगो मुझे ज़ंजीर दिखा कर

कैसी हैं कफ़-ए-लौह पे बे-रब्त लकीरें
मा'नी न छुपाओ मुझे तहरीर दिखा कर

ऐ शीशा-ए-जाँ तुझ में लहू ख़त्म भी होगा
ये नश्शा उतर जाएगा तासीर दिखा कर

मैं शम-ए-शब-ज़ुल्म हूँ आग़ाज़-ए-सहर तक
दिल बुझने लगा सुब्ह की तनवीर दिखा कर

किस शाख़ पे है हर्फ़-ए-गुल-ए-सुर्ख़ दिखाओ
क़ाइल भी करो लफ़्ज़ की तफ़्सीर दिखा कर

यूँ सेहर-ए-कशिश ने किया ए'जाज़ का मुंकिर
दीवार-ए-हवा पर मुझे शहतीर दिखा कर

है कोह-कनी बार-ए-अमानत अभी सर पर
मत रोक मुझे तेशा-ओ-तक़दीर दिखा कर

कहते हो कि ख़्वाहिश का समर तुर्श है 'शाहिद'
आँखों को ग़लत ख़्वाब की ता'बीर दिखा कर