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बे-वजह आप हमें काश न यूँ ठुकराते | शाही शायरी
be-wajah aap hamein kash na yun Thukraate

ग़ज़ल

बे-वजह आप हमें काश न यूँ ठुकराते

जतीन्द्र वीर यख़मी ’जयवीर’

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बे-वजह आप हमें काश न यूँ ठुकराते
आज़मा लेते या दस्तूर बदलते जाते

लाख चाहा कि हो पहचान कोई अपनी भी
काश हम आप के ही नाम से जाने जाते

ये भी एहसाँ न किया आप ने रूठो हम से
इक बहाना तो मिला होता मनाने आते

ख़ूब गहरी जो लगी चोट तो हम ने जाना
वक़्त लगता है किसी दर्द को जाते जाते