बे-वफ़ा ना-मेहरबाँ ये सच है वो ऐसा तो था
मत कहो कुछ उस को यारो जो भी था मेरा तो था
भीड़ इतनी है नगर में किस जगह ढूँडूँ उसे
एक चेहरा कुछ दिनों पहले कहीं देखा तो था
रात आई और आ के मुझ को तन्हा कर गई
कम से कम दिन था तो मेरे साथ इक साया तो था
अब तो इक मुद्दत हुई कोई सदा आती नहीं
जिन दिनों टूटा था दिल इक शोर सा उट्ठा तो था
हम 'हसन' को जानते हैं आदमी अच्छा न था
दो-घड़ी को पास आ के दिल को बहलाता तो था

ग़ज़ल
बे-वफ़ा ना-मेहरबाँ ये सच है वो ऐसा तो था
हसन कमाल