बे-सबब हो के बे-क़रार आया 
मेरे पीछे मिरा ग़ुबार आया 
चंद यादों का शोर था मुझ में 
मैं उसे क़ब्र में उतार आया 
उस को देखा और उस के बाद मुझे 
अपनी हैरत पे ए'तिबार आया 
भूल बैठा है रंग-ए-गुल मिरा दिल 
परतव-ए-गुल पे इतना प्यार आया 
एक दुनिया को चाहता था वो 
एक दुनिया में उस पे वार आया 
साँस लेती थी कोई हैरानी 
मैं जिसे लफ़्ज़ में उतार आया 
कुछ न आया हमारे कासे में 
और आया तो इंतिज़ार आया 
कब मुझे उस ने इख़्तियार दिया 
कब मुझे ख़ुद पे इख़्तियार आया 
बार-ए-वहशत कोई उठाता क्या 
सो दिगर बार दिल पे बार आया
        ग़ज़ल
बे-सबब हो के बे-क़रार आया
हम्माद नियाज़ी

