बे-सबब हम से जुदाई न करो
मुझ से आशिक़ से बुराई न करो
ख़ाकसाराँ को न करिए पामाल
जग में फ़िरऔं सी ख़ुदाई न करो
बे-गुनाहाँ कूँ न कर डालो क़त्ल
आह कूँ तीर-ए-हवाई न करो
एक दिल तुम से नहीं है राज़ी
जग में हर इक सूँ बुराई न करो
महव है 'फ़ाएज़'-ए-शैदा तुम पर
उस से हर लहज़ा बखाई न करो
ग़ज़ल
बे-सबब हम से जुदाई न करो
फ़ाएज़ देहलवी