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बे-क़रारी सी बे-क़रारी है | शाही शायरी
be-qarari si be-qarari hai

ग़ज़ल

बे-क़रारी सी बे-क़रारी है

तौसीफ ताबिश

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बे-क़रारी सी बे-क़रारी है
अब यही ज़िंदगी हमारी है

मैं ने उस को पिछाड़ना है मियाँ
मेरी साए से जंग जारी है

इश्क़ करना भी लाज़मी है मगर
मुझ पे घर की भी ज़िम्मेदारी है

प्यार है मुझ को ज़िंदगी से बहुत
और तू ज़िंदगी से प्यारी है

मैं कभी ख़ुद को छोड़ता ही नहीं
मेरी ख़ुद से अलग सी यारी है

शहर का शहर सो गया 'ताबिश'
अब मिरे जागने की बारी है