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बे-नियाज़ाना हर इक राह से गुज़रा भी करो | शाही शायरी
be-niyazana har ek rah se guzra bhi karo

ग़ज़ल

बे-नियाज़ाना हर इक राह से गुज़रा भी करो

अतहर नफ़ीस

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बे-नियाज़ाना हर इक राह से गुज़रा भी करो
शौक़-ए-नज़्ज़ारा जो ठहराए तो ठहरा भी करो

इतने शाइस्ता-ए-आदाब-ए-मोहब्बत न बनो
शिकवा आता है अगर दिल में तो शिकवा भी करो

सीना-ए-इश्क़ तमन्नाओं का मदफ़न तो नहीं
शौक़-ए-दीदार अगर है तक़ाज़ा भी करो

वो नज़र आज भी कम-मअ'नी ओ बेगाना नहीं
उस को समझा भी करो उस पे भरोसा भी करो