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बे-नाम सी ख़लिश कि जो दिल में जिगर में है | शाही शायरी
be-nam si KHalish ki jo dil mein jigar mein hai

ग़ज़ल

बे-नाम सी ख़लिश कि जो दिल में जिगर में है

राही शहाबी

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बे-नाम सी ख़लिश कि जो दिल में जिगर में है
हलचल बपा किए हुए ये बहर-ओ-बर में है

जाती हुई बहार के मंज़र को देख कर
आती हुई बहार का मंज़र नज़र में है

है दीद अव्वलीं भी यक़ीनन हसीं मगर
बात और ही नज़ारा-ए-बार-ए-दिगर में है

आएगी एक मंज़िल बे-शाम-ओ-बे-सहर
पिन्हाँ ये राज़ गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर में है

'राही' वो अहल-ए-दिल हैं ब-क़ौल-ए-'अमीर' हम
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है