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बे-मुरव्वत बेवफ़ा ना-मेहरबाँ ना-आश्ना | शाही शायरी
be-murawwat bewafa na-mehrban na-ashna

ग़ज़ल

बे-मुरव्वत बेवफ़ा ना-मेहरबाँ ना-आश्ना

मीर मोहम्मदी बेदार

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बे-मुरव्वत बेवफ़ा ना-मेहरबाँ ना-आश्ना
जिस के ये औसाफ़ कोई उस से हो क्या आश्ना

तंग हो साए से अपने जिस को हो ना-आश्ना
वो बुत-ए-वहशी-ए-तबीअत किस का होगा आश्ना

वाह वाह ऐ दिल-बर-ए-कज-फ़हम यूँही चाहिए
हम से हो ना-आश्ना ग़ैरों से होना आश्ना

बद-मिज़ाजी ना-ख़ुशी आज़ुर्दगी किस वास्ते
गर बुरे हम हैं तो हो जिए और से जा आश्ना

ये सितम ये दर्द ये ग़म और अलम मुझ पर हुआ
काश कि तुझ से मैं ऐ ज़ालिम न होता आश्ना

ने तरह्हुम ने करम ने मेहर है ऐ बेवफ़ा
किस तवक़्क़ो' पर भला हो कोई तेरा आश्ना

आश्ना कहने को यूँ तो आप के होवेंगे सौ
पर कोई ऐ मेहरबाँ ऐसा न होगा आश्ना

ख़ैर-ख़्वाह ओ मुख़्लिस ओ फ़िदवी जो कुछ कहिए सो हूँ
ऐब क्या है गर रहे ख़िदमत में मुझ सा आश्ना

आश्नाई की तवक़्क़ो' किस से हो 'बेदार' फिर
हो गया बेगाना जब ऐसा ही अपना आश्ना