EN اردو
बे-ख़ुदी साथ है मज़े में हूँ | शाही शायरी
be-KHudi sath hai maze mein hun

ग़ज़ल

बे-ख़ुदी साथ है मज़े में हूँ

बलवान सिंह आज़र

;

बे-ख़ुदी साथ है मज़े में हूँ
अपनी ही ज़ात के नशे में हूँ

अक्स जैसे हो कोई दरिया में
ऐसे पानी के बुलबुले में हूँ

तू भले मेरा ए'तिबार न कर
ज़िंदगी मैं तिरे कहे में हूँ

कोई मंज़िल कभी नहीं आई
रास्ते में था रास्ते में हूँ

मेरी वुसअ'त अजीब है 'आज़र'
फैल कर भी मैं दाएरे में हूँ