बे-ख़ुदी साथ है मज़े में हूँ
अपनी ही ज़ात के नशे में हूँ
अक्स जैसे हो कोई दरिया में
ऐसे पानी के बुलबुले में हूँ
तू भले मेरा ए'तिबार न कर
ज़िंदगी मैं तिरे कहे में हूँ
कोई मंज़िल कभी नहीं आई
रास्ते में था रास्ते में हूँ
मेरी वुसअ'त अजीब है 'आज़र'
फैल कर भी मैं दाएरे में हूँ
ग़ज़ल
बे-ख़ुदी साथ है मज़े में हूँ
बलवान सिंह आज़र