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बे-ख़ुदी में अजब मज़ा देखा | शाही शायरी
be-KHudi mein ajab maza dekha

ग़ज़ल

बे-ख़ुदी में अजब मज़ा देखा

शाह आसिम

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बे-ख़ुदी में अजब मज़ा देखा
सिर्र-ए-मख़्फ़ी को बरमला देखा

आप ही गुल ही आप ही बुलबुल
उस को हर रंग-आश्ना देखा

कहता है आप समझे भी है आप
उस को हर शय में ख़ुद-नुमा देखा

सूरत-ए-क़ैस मैं हुआ मजनूँ
शक्ल-ए-लैला में ख़ुशनुमा देखा

आप ही बन के ईसा और मुर्दा
आप ही आप को जिला देखा

हो बर-अफ़रोख़्ता ब-सूरत-ए-शम्अ
शक्ल-ए-परवाना में जला देखा

साग़र-ए-बे-ख़ुदी से हो सरशार
हम ने हर शय में अब ख़ुदा देखा

आलम-ए-इश्क़ में कहें क्या हम
जल्वा-ए-हुस्न जा-ब-जा देखा

फ़ैज़-ए-ख़ादिम सफ़ी से ऐ 'आसिम'
उस को देखा जिसे न था देखा