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बे-कसी में यही हूँ पास कहीं | शाही शायरी
be-kasi mein yahi hun pas kahin

ग़ज़ल

बे-कसी में यही हूँ पास कहीं

नूह नारवी

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बे-कसी में यही हूँ पास कहीं
मैं कहीं हूँ मिरे हवास कहीं

मैं तुझे बा-वफ़ा समझता हूँ
न ग़लत हो मिरा क़यास कहीं

काबा ओ दैर में तो ढूँढ चुके
वो न हो दिल के आस-पास कहीं

ये ख़ुलासा है दफ़्तर-ए-ग़म का
कहीं शिकवा है इल्तिमास कहीं

'नूह' जाएँगे बज़्म-ए-यार में हम
शौक़ से बढ़ के है हिरास कहीं