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बे-कैफ़ जवानी है बे-दर्द ज़माना है | शाही शायरी
be-kaif jawani hai be-dard zamana hai

ग़ज़ल

बे-कैफ़ जवानी है बे-दर्द ज़माना है

सरवर आलम राज़

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बे-कैफ़ जवानी है बे-दर्द ज़माना है
नाकाम-ए-मोहब्बत का इतना ही फ़साना है

सावन का महीना है मौसम भी सुहाना है
आ जाओ जो आना है आ जाओ जो आना है

ऐ काश कोई कह दे उस चश्म-ए-फ़ुसूँ-गर से
नज़रों का चुराना ही नज़रों का मिलाना है

आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक
''इक आग का दरिया है और डूब के जाना है'