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बे-कैफ़ दिल है और जिए जा रहा हूँ मैं | शाही शायरी
be-kaif dil hai aur jiye ja raha hun main

ग़ज़ल

बे-कैफ़ दिल है और जिए जा रहा हूँ मैं

जिगर मुरादाबादी

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बे-कैफ़ दिल है और जिए जा रहा हूँ मैं
ख़ाली है शीशा और पिए जा रहा हूँ मैं

पैहम जो आह आह किए जा रहा हूँ मैं
दौलत है ग़म ज़कात दिए जा रहा हूँ मैं

मजबूरी-ए-कमाल-ए-मोहब्बत तो देखना
जीना नहीं क़ुबूल जिए जा रहा हूँ मैं

वो दिल कहाँ है अब कि जिसे प्यार कीजिए
मजबूरियाँ हैं साथ दिए जा रहा हूँ मैं

रुख़्सत हुई शबाब के हमराह ज़िंदगी
कहने की बात है कि जिए जा रहा हूँ मैं

पहले शराब ज़ीस्त थी अब ज़ीस्त है शराब
कोई पिला रहा है पिए जा रहा हूँ मैं