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बे-जुम्बिश-ए-अब्रू तो नहीं काम चलेगा | शाही शायरी
be-jumbish-e-abru to nahin kaam chalega

ग़ज़ल

बे-जुम्बिश-ए-अब्रू तो नहीं काम चलेगा

अब्दुल हमीद अदम

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बे-जुम्बिश-ए-अब्रू तो नहीं काम चलेगा
आ कर मिरे क़िस्से में तिरा नाम चलेगा

ठहरा है मिरे ज़ेहन में जो क़ाफ़िला-ए-गुल
थोड़ा सा तो ले कर यहाँ आराम चलेगा

ज़ुहहाद की माला नहीं जो रात को निकले
रिंदों का पियाला है सर-ए-शाम चलेगा

तू रक़्स करे गिर्द मिरे और मैं गाऊँ
ये खेल भी ऐ गर्दिश-ए-अय्याम चलेगा

छुप छुप के जो आता है अभी मेरी गली में
इक रोज़ मिरे साथ सर-ए-आम चलेगा