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बे-हिसी की भीड़ में वो खो गया | शाही शायरी
be-hisi ki bhiD mein wo kho gaya

ग़ज़ल

बे-हिसी की भीड़ में वो खो गया

मज़हर अब्बास

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बे-हिसी की भीड़ में वो खो गया
ख़ौफ़ था जिस का वही कल हो गया

हर क़दम पर पाँव क्यूँ ज़ख़्मी हुए
राह-ए-हक़ में कौन काँटे बो गया

रात-भर तो चाँद जागा मेरे साथ
फिर सहर के वक़्त थक कर सो गया

माँ ने बस पानी उबाला रात-भर
रोते रोते उस का बच्चा सो गया

वो कहीं का भी न 'मज़हर' हो सका
हाथ को मुझ से छुड़ा कर जो गया