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बे-हिजाब आप के आने की ज़रूरत क्या थी | शाही शायरी
be-hijab aap ke aane ki zarurat kya thi

ग़ज़ल

बे-हिजाब आप के आने की ज़रूरत क्या थी

जैमिनी सरशार

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बे-हिजाब आप के आने की ज़रूरत क्या थी
यूँ मिरे होश उड़ाने की ज़रूरत क्या थी

हम से कहना था डुबो देते सफ़ीना अपना
इतने तूफ़ान उठाने की ज़रूरत क्या थी

जब से आया हूँ यहाँ मोहर-ब-लब बैठा हूँ
मुझ को महफ़िल में बुलाने की ज़रूरत क्या थी

अपने किरदार-ओ-अमल पर जो भरोसा होता
आप के नाज़ उठाने की ज़रूरत क्या थी

यूँ भी हो सकते थे आबाद तिरे वीराने
हम को दीवाना बनाने की ज़रूरत क्या थी

अश्क-ए-ख़ूँ बअ'द में 'सरशार' बहाने थे अगर
ख़ून-ए-उश्शाक़ बहाने की ज़रूरत क्या थी