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बे-घरी का अपनी ये इज़हार कम कर दीजिए | शाही शायरी
be-ghari ka apni ye izhaar kam kar dijiye

ग़ज़ल

बे-घरी का अपनी ये इज़हार कम कर दीजिए

राजेश रेड्डी

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बे-घरी का अपनी ये इज़हार कम कर दीजिए
शे'र में ज़िक्र-ए-दर-ओ-दीवार कम कर दीजिए

अपनी तन्हाई में इतना भी ख़लल अच्छा नहीं
आप अपने आप से गुफ़्तार कम कर दीजिए

दुश्मनों की ख़ुद-ब-ख़ुद हो जाएगी तादाद कम
यारों की फ़िहरिस्त में कुछ यार कम कर दीजिए

जब तवज्जोह ही नहीं मौजूदगी किस काम की
इस कहानी में मिरा किरदार कम कर दीजिए

सोचिए अब इतने चारागर कहाँ से आएँगे
मुस्कुरा कर अपने कुछ बीमार कम कर दीजिए

आप की बातों में आ कर जान से तो जा चुके
अब तो इन में ज़हर की मिक़दार कम कर दीजिए