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बे-घर था फिर छोड़ गया घर जाने क्यूँ | शाही शायरी
be-ghar tha phir chhoD gaya ghar jaane kyun

ग़ज़ल

बे-घर था फिर छोड़ गया घर जाने क्यूँ

अनवर जमाल अनवर

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बे-घर था फिर छोड़ गया घर जाने क्यूँ
पार किया है सात समुंदर जाने क्यूँ

आँखें हैराँ दिल वीराँ हैं चेहरे ज़र्द
चीख़ रहा है मंज़र मंज़र जाने क्यूँ

आँखों में मज़लूमों के बस आँसू हैं
फ़िक्र में है हर एक सितम-गर जाने क्यूँ

तपती रीत झुलसते साए तुंद हवा
घर से निकला मोम का पैकर जाने क्यूँ

फूल सा चेहरा झील सी उस की आँखें हैं
याद आता है मुझ को अक्सर जाने क्यूँ

आते जाते सब से बातें करता था
चुप बैठा है आज क़लंदर जाने क्यूँ

मेरी ग़ज़लें सुन कर 'अनवर' चाहत से
देखता है हर एक सुखनवर जाने क्यूँ