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बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे | शाही शायरी
be-dili kya yunhi din guzar jaenge

ग़ज़ल

बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे

जौन एलिया

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बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे
सिर्फ़ ज़िंदा रहे हम तो मर जाएँगे

रक़्स है रंग पर रंग हम-रक़्स हैं
सब बिछड़ जाएँगे सब बिखर जाएँगे

ये ख़राबातियान-ए-ख़िरद-बाख़्ता
सुब्ह होते ही सब काम पर जाएँगे

कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे

है ग़नीमत कि असरार-ए-हस्ती से हम
बे-ख़बर आए हैं बे-ख़बर जाएँगे