बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते
तुम अच्छे मसीहा हो शिफ़ा क्यूँ नहीं देते
दर्द-ए-शब-ए-हिज्राँ की जज़ा क्यूँ नहीं देते
ख़ून-ए-दिल-ए-वहशी का सिला क्यूँ नहीं देते
मिट जाएगी मख़्लूक़ तो इंसाफ़ करोगे
मुंसिफ़ हो तो अब हश्र उठा क्यूँ नहीं देते
हाँ नुक्ता-वरो लाओ लब ओ दिल की गवाही
हाँ नग़्मागरो साज़-ए-सदा क्यूँ नहीं देते
पैमान-ए-जुनूँ हाथों को शरमाएगा कब तक
दिल वालो गरेबाँ का पता क्यूँ नहीं देते
बर्बादी-ए-दिल जब्र नहीं 'फ़ैज़' किसी का
वो दुश्मन-ए-जाँ है तो भुला क्यूँ नहीं देते
ग़ज़ल
बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़