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बे-आब-ओ-बे-ग्याह हुआ उस को छोड़ कर | शाही शायरी
be-ab-o-be-gyah hua usko chhoD kar

ग़ज़ल

बे-आब-ओ-बे-ग्याह हुआ उस को छोड़ कर

शकेब अयाज़

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बे-आब-ओ-बे-ग्याह हुआ उस को छोड़ कर
कैसे बुझाऊँ प्यास मैं पत्थर निचोड़ कर

वो भी अजीब शाम थी जिन साअ'तों के बीच
मैं भी बिखर बिखर गया शीशे को तोड़ कर

मैं घर गया हूँ रंग-ए-सपेद-ओ-सियाह में
वो ख़ुश है ज़ाफ़रान की इक शाख़ तोड़ कर

कुछ और तेज़ हो गई अंदर की रौशनी
इक पल भी मिल सका न सुकूँ आँख फोड़ कर

अब तक तो शेर-गोई पे क़ाने रहा मगर
तू भी 'शकेब' अयाज़ कोई तोड़-जोड़ कर