बज़्म-ए-ईजाद में बे-पर्दा कोई साज़ नहीं
है ये तेरी ही सदा ग़ैर की आवाज़ नहीं
कह सके कौन वो क्या है मगर अज़-रू-ए-यक़ीं
गुल नहीं शम्अ' नहीं सर्व-ए-सर-अफ़राज़ नहीं
दिल हो बे-लौस तो क्या वजह-ए-तसल्ली हो दरोग़
ताइर-ए-मुर्दा मगर तोमा-ए-शहबाज़ नहीं
बुलबुलों का था जहाँ सेहन-ए-चमन में अम्बोह
आज चिड़िया भी वहाँ ज़मज़मा-पर्दाज़ नहीं
भाग वीराना-ए-दुनिया से कि इस मंज़िल में
नुज़्ल-ए-मेहमान ब-जुज़ माइदा-ए-आज़ नहीं
दिलबरी जज़्ब-ए-मोहब्बत का करिश्मा है फ़क़त
कुछ करामत नहीं जादू नहीं एजाज़ नहीं
दिल की तस्ख़ीर है शीरीं-सुख़नी पर मौक़ूफ़
कुछ करामत नहीं जादू नहीं एजाज़ नहीं
दस्त-ए-क़ुदरत ने मुझे आप बनाया है तो फिर
कौन सा काम है मेरा कि ख़ुदा-साज़ नहीं
ग़ज़ल
बज़्म-ए-ईजाद में बे-पर्दा कोई साज़ नहीं
इस्माइल मेरठी