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बज़्म-ए-ईजाद में बे-पर्दा कोई साज़ नहीं | शाही शायरी
bazm-e-ijad mein be-parda koi saz nahin

ग़ज़ल

बज़्म-ए-ईजाद में बे-पर्दा कोई साज़ नहीं

इस्माइल मेरठी

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बज़्म-ए-ईजाद में बे-पर्दा कोई साज़ नहीं
है ये तेरी ही सदा ग़ैर की आवाज़ नहीं

कह सके कौन वो क्या है मगर अज़-रू-ए-यक़ीं
गुल नहीं शम्अ' नहीं सर्व-ए-सर-अफ़राज़ नहीं

दिल हो बे-लौस तो क्या वजह-ए-तसल्ली हो दरोग़
ताइर-ए-मुर्दा मगर तोमा-ए-शहबाज़ नहीं

बुलबुलों का था जहाँ सेहन-ए-चमन में अम्बोह
आज चिड़िया भी वहाँ ज़मज़मा-पर्दाज़ नहीं

भाग वीराना-ए-दुनिया से कि इस मंज़िल में
नुज़्ल-ए-मेहमान ब-जुज़ माइदा-ए-आज़ नहीं

दिलबरी जज़्ब-ए-मोहब्बत का करिश्मा है फ़क़त
कुछ करामत नहीं जादू नहीं एजाज़ नहीं

दिल की तस्ख़ीर है शीरीं-सुख़नी पर मौक़ूफ़
कुछ करामत नहीं जादू नहीं एजाज़ नहीं

दस्त-ए-क़ुदरत ने मुझे आप बनाया है तो फिर
कौन सा काम है मेरा कि ख़ुदा-साज़ नहीं