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बयाज़-ए-कोहना में जिद्दत भरी तहरीर रखनी है | शाही शायरी
bayaz-e-kohna mein jiddat bhari tahrir rakhni hai

ग़ज़ल

बयाज़-ए-कोहना में जिद्दत भरी तहरीर रखनी है

नदीम सिरसीवी

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बयाज़-ए-कोहना में जिद्दत भरी तहरीर रखनी है
पुरानी नियाम में या'नी नई शमशीर रखनी है

फ़सील-ए-फ़िक्र से गिरता हुआ मिस्रा उठाना है
सिरहाने अब मुझे हर दम किताब-ए-'मीर' रखनी है

मुझे ता-उम्र रंज-ए-क़ैद को महसूस करना है
मुझे ता-उम्र अपने पास ये ज़ंजीर रखनी है

सजाओ ख़्वाब कोई रात की बे-रंग आँखों में
अगर बाक़ी दिलों में ख़्वाहिश-ए-ता'बीर रखनी है

ख़ुदी से बे-ख़ुदी की जंग है गोया मुझे इस पल
मुक़ाबिल अपने ही अपनी कोई तस्वीर रखनी है

हमें अपने लहू से दश्त इक गुलज़ार करना है
हमें ता-हश्र ज़िंदा अज़्मत-ए-तकबीर रखनी है

उसे दुनिया के हर ग़म से मुकम्मल पाक तो कर लो
अगर इस दिल में बुनियाद-ए-ग़म-ए-शब्बीर रखनी है