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बयान क़िस्सा-ए-बेचारगी किया जाए | शाही शायरी
bayan qissa-e-bechaargi kiya jae

ग़ज़ल

बयान क़िस्सा-ए-बेचारगी किया जाए

सरवर आलम राज़

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बयान क़िस्सा-ए-बेचारगी किया जाए
जो दिल की रह गई दिल में उसे कहा जाए

ये ज़िंदगी है तो फिर मौत किस को कहते हैं
न रोया जाए है मुझ से न ही हँसा जाए

तिरे ख़याल की आसूदगी मआज़-अल्लाह
ये जब भी आए है इक उम्र का गला जाए

फ़क़ीह-ए-शहर भी बिकने लगे सर-ए-बाज़ार
ग़रीब-ए-शहर कहाँ जाए और क्या जाए